आलस और थकान से भरी आँखें, अब ज़रा सोना चाहती हैं लक्ष्य को पल भर भूलके, समय के साये में खोना चाहती हैं दिल और दिमाग की इस लड़ाई में, दोनों को मैं समझाऊंगा रस्ता टूटा या मुश्किल तो क्या, मंज़िल तो हर हाल में पाउँगा। जो अपने थे वो पराये हुए, पराये तो खैर पास आते कब थे लक्ष्य जिन्होंने यहाँ पाया है, वो लघु मार्ग पर जाते कब थे घर छूटा, घर वाले छूटे, मैं राही खुद अपनी राह बनाऊंगा रस्ता टूटा या मुश्किल तो क्या, मंज़िल तो हर हाल में पाउँगा। प्रतिदिन क्षितिज से ढलता सूरज, फिर अपनी जगह पे आता है प्रकृति अविरल अपने कर्म करे, यहाँ मनुष्य ही रूक जाता है जब तक सांस रहेगी खुद में, अब मैं भी ज़िंदा कहलाऊंगा रस्ता टूटा या मुश्किल तो क्या, मंज़िल तो हर हाल में पाउँगा। कर्म ही किस्मत, कर्म ही ताक़त, कर्म ही अपना विधाता है वर्तमान में आगे चल हमराही, कल परसो भी आज ही आता है खाली हाथ भेजा था उसने यहाँ, मैं तो मुठ्ठी भर के जाऊंगा रस्ता टूटा या मुश्किल तो क्या, मंज़िल तो हर हाल में पाउँगा। ~ Abhinaw Singh (Guest Post) -
Taming emotions!